सिकुड़ता समाज बढ़ती अश्लीलता
जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ उस समाज की जहाँ मान्यताएं थी कि दूसरों की बहन – बेटियों को अपनी बहन -बेटियों की तरह मानो , पराई स्त्री में अपनी माँ का स्वरूप देखो । भाभी माँ के समान होती है । बुजुर्गों का सम्मान करो , समाजिक बुराइयों का विरोध करो , धर्म की रक्षा अपने प्राण देकर भी करो । सड़क पर रास्ते में पड़े घायलों की मदद करो , अतिथि भगवान् के रूप होते हैं । बड़ो का सम्मान करो , गुरुओं की आज्ञा का पालन करों । नवरात्रि पर कन्याओं को माँ के रूप में पूजन होता है। यही था ना हमारा समाज , फिर इस समाज में एकाएक इतनी हवस इतनी कामातुरता कैसे आ गयी ? किस डे , वेलेंटाइन डे , रोज डे , के नाम पर काम को पाला पोषा और परोसा जाने लगा ?
आज जो अश्लीलता हम सबको सड़कों पर , पार्कों में , क्लबों में दिख रहा है , वास्तव में इसका जिम्मेदार कौन है ?
वर्षो पहले हमारे इसी समाज में एक स्त्री से सुख व शारीरक सम्बन्ध की मान्यता थी फिर एकाएक ऐसा क्या हो गया है कि आज समाज की काम शाक्ति इतनी तीव्र हो गयी और उसे अपनी काम वासना को परदे के बाहर लाना पड़ा , अनेको स्त्रियों की जरुरत आ पड़ी, लिव इन रिलेशन शिप की , गे को मान्यतायें देनी पड़ी ..?
सत्य तो यह है समाज हमसे बना है , पहले समाज की स्थापना व बागडौर चरित्रवान लोगो के हाथ में होता था , समाज के फैसलों को कोर्ट या अधिकारी भी नहीं काटते थे , लेकिन जैसे – जैसे समाज चरित्रहीनों के हाथ में आया लोगों को समाज से विश्वास उठ गया । समाज का उपयोग बाजार व वोट के लिए हो गया ।
हमारी मान्यताओं को खत्म करने के लिए हमें 21 वीं शदी के सपने दिखाये गये , उसके लिए मॉर्डन इसन्स्टिट्यूट खोले गए , कुर्ते -धोती , साडी की जगह जीन्स , टॉप पहनाये गये , हाथों में बोतल व सिगरेट पकड़ाई गयी । इस प्रकार हमने अपने इन्ही हाथों से हमने ही समाज को खत्म कर डाला ।
आज हमारी बेटी की शिकायत जब कोई जानकार या पडोसी करने आता है तो हम अपनी बेटी का दोष ना देकर उसके सामने ही उस जानकार या पडोसी के इज्जत की धज्जियाँ उदा देते हैं उनसे लड़ बैठते हैं कि आप ” होते कौन है हमारी बेटी पर अंगुली उठाने वाले इस प्रकार बेटी की गलतियों को बढ़ाकर उसका मनोबल बढ़ा रहे है और दूसरी तरफ समाज के मुँह पर थप्पड़ मार रहे हैं ।
यही नहीं हमने अपना समाज घर की टीवी , मोबाईल व लैपटॉप तक ही सीमित कर लिया , जहाँ नंगे विज्ञापनों के फँसा व्यक्ति स्वतः के महत्व व दायित्वों को ही भूल बैठा ।
इसी समाज के साथ ही एक दूसरा भी समाज है , जिसमें 10 % लड़कियां अपने अब्बू के सामने वेलेंटाइन डे , किस डे , रोज डे मनाने की हिम्मत नहीं कर सकती, क्योंकि उनका समाज तुम्हारे समाज से ज्यादा शक्तिशाली है , उनमें समाज के प्रति जिम्मेदारी है , उनकी मान्यता व अनुशासन उन्हें खुले आम नंगेपन को सार्वजानिक करने की इजाजत नहीं देती है ।
आज तक समाज ने कितनी बार सड़कों पर अश्लील विज्ञापनों , अश्लील गानों के प्रति आवाज उठाया, आज हर चीज खुलेआम बिक रही है बस उसका कबर बदल दिया गया है … “फैशन , एडवांस , मॉर्डन , vip , एजुकेटेड आदि लोग है , इनकी यही सोसाइटी है और इस अश्लीकता को इन्ही नामो से कवर देकर सुरक्षित रखा गया । “
मैं बधाई देता हूँ उन अंगेजों को जो हमारी नस्लों तक को गुलाम कर गये , और उससे अधिक बधाई के पात्र हमारे वह नेता व समाज सेवी हैं जिन्होंने एडवांसता व 21 वीं सदी का सपना दिखाकर उन्ही पशुओं के बीच लाकर खड़ा कर दिया जिनके समाज में माताओं बहनो को नंगा देख वह लोग खुश होते हैं ।